आज साज़ खामोश पड़े थे ,
सूर उसमे चुपकेसे सोये थे .....
पंचमने निषादसे कहा
आज हवा है मध्धम मध्धम ,
सूरज भी षडजकी तरह
कम तपिशसे गुजर रहा है जैसे ...
रिषभने पलटकर देखा
शायद किसीने पुकारा हो !!!!
वो तो गांधारके गीत थे
होठों पर कांपकर रुके रुके से !!!!
धैवत अकेला तबला पर बैठा
साध रहा था सूर बजाकर तीरकिट धान !!!!!
एय सूर तुम्हे ढूंढ रही है
आज ढलती हुई शाम ,
सूरसंगम के पूल पर उगती है रात ......
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
11 अप्रैल 2011
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