4 दिसंबर 2009

ख़ुदसे अनजान हूँ मैं ....

चारसौवी पोस्ट के साथ नए साल में प्रवेश कर रही हूँ :

दूर सुदूर कोई पुकार आ रही थी

जाने वो क्यों मुझे अपनी और खींचे जा रही थी !!!!!

अपने से बाहर ख़ुद मैं ही मुझे बुला रही थी ...

ये आभास था या आयना ?

हमें हर शख्समें अपनी सूरत नजर आ रही थी .....

किसी ने रोक कर पूछा मुझे

हरदम तेरा चेहरा यूँ हँसता क्यों दिखे है ?

हमने कहा क्या करे ?

रोते रोते सारे आंसू सूख चुके है ...

इस हालातमें हम कुछ दुनिया पर

और कुछ हम ख़ुद पर ही हंस रहे है !!!!!!

हर नए दिन के साथ कभी लगा मैं

हर चीज़ जानती हूँ अपने बारे मैं ...

पर हर कलम परस्ती के बाद ये ही लगा ,

अरे मैं ख़ुद से ही अनजान थी अब तक .....

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