18 मार्च 2016

कुछ गुजरी यादें ,

कुछ बीते दिन ,
कुछ गुजरी  यादें ,
कुछ टीस  कुछ हंसी  ,
सब बेमानी से लगते है ,
 ये जिंदगी रोज
 एक नया पन्ना खोलकर बैठती है ,
रोज ये चाहत होती है उसे कोरा छोड़ने की  ,
मैं मुंह फेर के बैठती हूँ  ,
दूसरे दिन वहां मेरी उदासी लिखी होती है  ...
ये वक्त अपनी कहानी लिखने आता है  ,
ये किस्मत उसे चलाती  होगी  ,
जिंदगी तो मेरी होती है  फिर भी  ,
वहां मेले लगते है जो मेरे होते हुए भी
कभी कभी अजनबी लगते है  ...
अफ़सोस या ख़ुशी के परे  एक जहाँ होता है  ,
मेरा मक़ाम अब शायद वहां होता है  .....

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