7 दिसंबर 2015

इतिहास

खुद की तस्वीर देखकर हैरान हूँ  ,
ये ज़ुर्रियाँ  कब लिखने लगी दास्तानें
चहेरे के कागज़ पर बिना इजाजत के ??
मुझे पूछा तो होता चहेरा जो मेरा है तो !!!
ज़ुर्रियोँ में बैठा वक्त मुस्कुरा रहा था
कह रहा था मैं वर्तमान हूँ  ,
तुम किस गलीमें जवानी की गुमशुदा हो ???
तो खिड़की खोली मैंने अपने कमरे की  :
देखा :
वो घर सारे नया कलेवर लिए खड़े है  ,
वो दो मंज़िला ईमारतें आसमाँ से गुफ्तगू में व्यस्त ??!!
रास्ते थोड़े वजनदार हो गए है तो चौड़ी जगह उन्हें भी चाहिए !!
अब ये छोटी सी जगह लोग शहर के नामसे जानते है  ,
रेलवे स्टेशन पर भी नाम के साथ जंक्शन जुड़ा है  ..
तब ऊपर से हवाई जहाज गुजरा  .....
आसमान पर हमारे साथ दौड़ने पर निशान फिर नजर आये  ,
क्या ये वर्तमान है ???
वो हमारी जवानीने पैदा किया है  ,
इस की परवरिश में हम बूढ़े हो गए ????
बस जुर्रियों ने हंस दिया हम पर  ...
कहा :
कुछ नहीं नया ये ,इतिहास खुद को दोहरा रहा है  .. 

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