4 नवंबर 2015

नीले आसमानों पर

ख्वाबों के नीले आसमानों पर
हसरतें लिख रही है कुछ दास्ताँ अनकही सी  .
रातों को नींद बैरी बनकर ठिठोली करती ,
मेरे कमरे से दीखते चाँद को दिखाकर
चिढ़ाती  है मुझे अक्सर  ....
चाँद देखकर मुझे हौले  मुस्कुराया ,
मैंने भी उसके इस्तकबाल  के लिए
 एक नज़्म को धीरे से गुनगुनाया   …
मेरी और चाँद  गुफ्तगू बस चल रही थी
और पीछे से  हसरतने आवाज लगायी
वो  नूरानी हयात बनकर सामने खड़ी थी  …
मैं और चाँद दोनों बूत बने देखते रहे
और सुबह हो गयी  .... 

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