20 अक्तूबर 2015

सूरज की राख

 एक सोते हुए मासूम बच्चे के चहेरे सी
मासूम सुबह एक बुजुर्ग की तरह
एक दिनका अनुभव बटोरे हुए
हर शाम थक जाती है ,हाँफती है   ....
क्यों वो दिन तप्त रहता है ,
क्या सूरज सचमुच जलता होगा ???
अगर सूरज जलता होता तो
राख नहीं उड़ती हवाओं में ???
जलती हर शमा की लौ ख़त्म होती है
उसकी रौशनी बुझ जाती है ,
फिर अँधेरा छा जाता है
और एक दीपक उजाला उधर देने आता है  ....
फिर सोचा इत्मीनान से बैठकर  ,
सूरज भी बुझ जाता है शाम को  ,
और उसकी राख भी तेज उसका सिमटाये हुए
आसमान की तश्तरी में सितारे बनकर बिखरती है  ....!!!!!

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