10 अक्तूबर 2015

तुम ही मैं ....

कल औस की बौछार हुई रात के लिबास में ,
तुम्हारी जुल्फें भीगी उस बरसात में ,
फ़िज़ा में फ़ैल गयी खुशबु यूँ
की सपने भी भीगते रहे पलकों पर बैठे  ....
ये तुम्हारी शरारतें जो बयाँ हो रही है ,
खिलखिलाती हवा के साथ अठखेलियाँ कैसी ???
बस चहेरे का चाँद छुप रहा था ,
जुल्फों के परदे जैसे तार तार से होकर   ....
कुछ नज़र आता था मुझे उस पार ,
होठों की नमीं नैनों में जमीं थी ,
बस कागज़  पर अल्फ़ाज़ बिखरे पड़े थे ,
मैं तो समेटता रहा नज़ाकत से चुनते हुए  …
तुम आरज़ू ,
तुम वजूद ,
तुम हकीकत ,
तुम सपना ,
तुम ही मैं .... 

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