24 अप्रैल 2015

खुद को समजाना है ....

अहसासों पर करम का ये फ़साना था  ,
शायद मेरी कलम का वो जनाजा था   …
तेरे दर पर जाकर हर सदा लौट चुकी थी जब  ,
तेरे आने की आहट का फकत भरम सा था  …
आज जाकर देखा तो दिल विल प्यार वार
एक जमाना गुजर गया था उस गलीमें गए  …
न प्यार का दीदार हुआ  , न दिलका दरद  ,
कहती रहती है प्यार जिसे वो न दिखा है
कभी लगा है वो तो है जीने की वजह या भरम ????
क्यों आज मायूसी छायी है हर तरफ ,धुंधलाती गर्द सी ??
खुद की चिता की राख से उठकर खड़ा होना है अब  ,
प्यार की दुनिया के उस पर भी
जहाँ और भी है ये खुद को समजाना है  .... 

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