12 अगस्त 2014

खुद ही जवाब बना जाए ???!!!

जिंदगी एक सफर ,
इब्तदा से इन्तेहाँ तक .
आग़ाज़ से अंजाम तक का  ,
समंदर से साहिल तक का  …
उदय से अस्त तक का   …
अनगिनत मंजर से गुजरना  है  …
कभी कारवाँ का हिस्सा बनकर  ,
कभी तनहा तनहा ही चलना है  …
ख़ुशी के कहकहे है कहीं कहीं  ,
वक्त उस घडी खुद में
मौसमे गम का मंजर है  …
तनहा दिल को अश्कों का साथ है  …
कह देते है जूठ्मूठ ही तब  ,
जाने भी दो यारो ख़ुशी में ये आँखों की नमी है  …
जब गम हो चारो और तब कोई मंजर
हमें चुपके से गुदगुदा देता है
और हम हस भी नहीं सकते
क्योंकि गम में हंसी को
कभी मेहमान होने का हक्क नहीं  …
चलो इस दुनियामें रहकर निभाई जाए दुनिया दारी ???
या खुद की खोज में खुद के साथ चला जाए ???
खुद  के सवाल का खुद ही जवाब बना जाए ???!!!

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