11 सितंबर 2013

वो सिप्पियाँ …

ज्वारभाटा क्या समुन्दरकी अमानत है ???
कुछ पता नहीं चलता  …
लगता है कभी कभी ख्याल के समुन्दर भी
ज्वारभाटे के दौर से गुजरते होंगे  …
एहसास के गिले गिले शब्द सब बहुत दूर तक
बहुत दूर तक
चले जाते होंगे  ….
साहिल पर ठहर जाती होगी
वो गीली गीली रेत सी यादें ,
कुछ टूटे हुए शंख ,थोड़ी चुनी थी वो सिप्पियाँ  …
और वो गीली सी रेत पर
लिखे थे हाथमे हाथ पकड़कर चलते हुए
हम दोनों के पैरों के निशाँ  ……
जहाँ तक पहुंचकर वो झाग भरी लहर उसे
अपने संग लिपट कर ले गए गहराई में ,
फिर एक सिप्पी बनकर लौटेंगे
आने वाले दौर में हम और तुम फिर से  …
और फिर एक ज्वारभाटा होगा …… 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
    ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

    जवाब देंहटाएं
  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

    जवाब देंहटाएं

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