18 सितंबर 2012

तेरी तस्वीरें बनकर .....

टूटे हुए थे कागज़ कलम जमीं पर बिखरे हुए ,
लग रहा है कल जोरोंकी आंधी आई थी यहाँ ....
टूटी थी कलम फटे थे कागज़ स्याही भी बिखर गयी थी ,
उनके सफ़रका ये आलम जिससे मैं अनजानी थी ....
खिड़कीका शीशा भी टुटा हुआ था एक पत्थर से ,
पता नहीं चला ये क्या हुआ था क्या माज़रा था ,
कल रात लगता था यहीं पर किसीका दिल टुटा था ,
कल रात लगता था यहीं पर किसीके अरमानका जनाजा उठा था .....
टूटी हुई कलम और फटा हुआ कागज़ उठाया ,
सिर्फ एक नाम लिखा पाया "आंधी" था ,
वही  कोनेकी संदूकमें रख दिए दोनोंको मैंने ,
जहाँ मेरा खजाना छुपा था ,तेरी तस्वीरें बनकर .....

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