29 जुलाई 2012

एक बार पूछ तो लूं !!!

वक्तकी संदूकने बंद कर रखे  थे कुछ
कागज़की यादों के लिफाफे ,
खोला तो पाया हर लिफाफा खाली था ,
पर नमी अभी भी तेरी खुशबू लिए बरक़रार थी .......
समयको चार टुकडोमें बाँट दिया ,
हर टुकड़े को एक सा काटा था
पर ..
हर टुकड़ा वक्त के साथ छोटा होता चला गया ....
एक दिन वहां पर पाए
बस रेत पर पड़े कदमोंके निशान
जहाँ वक्तके अक्स परछाई बनकर चल रहे थे ,
कंधे पर कुछ यादोंके संदूक उठाकर .....
पर खुद से जुदा करके देखा खुद को तब जाना
बेमानी है ये जिंदगी जहाँ यादें हमारे साथ ही हो ,
और उनके दिलमें खाली कोरे कागज़की खलिश ..........
बस उसका पता मिल जाए ...!!!
एक बार पूछ तो लूं !!!
क्या मेरा कुछ वक्त तुम्हारे पास तो नहीं ??!!!

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