17 जुलाई 2012

जूठी दुनिया जूठे लोग ..!!!!

ख्वाब क्यों आते है रोज रातोंको
मुझे नींदसे जगाने को ,तंग करने को ???
ख्वाबोकी जरुरत नहीं है
अब मृगजलसे नहीं भरते है पयमाने ....
एक तीखेसे तकिये पर टिका हुआ ये सर ,
वो पलंगका सिरहाना भाता था जब
तन्हाईयाँकी आसमें हम यहाँ पर आते थे ....
तेरी यादोंके सहारे सपनोके पलने झुलाते थे ....
अब वो मंजर कहीं छुट गया है पीछे ...
अब हम नहीं रहे बच्चे ,
हम बहुत बड़े हो चुके है ,
इसी लिए जुत्सजूमें जिसकी जीते थे कल तक ,
आज वही लोगोंको हम परायोंमें शुमार कर चुके है ...
हाँ ये वक्त का तकाजा है ,
की वक्तके साथ चलना हमें भी तो आता है ,
बस हर इंसान यूँही खुदको झुठलाता है ,
लेकिन सुकून को ढूँढनेके लिए ,
वही तकिये पर उसी ख्वाबके इंतज़ारमें रहता है .....

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