वो दिन याद आता है ,
जब चाचाकी बेटी सो रही थी सुबहमें ,
उसकी चोटीके बाल उसकी नाकमें घुसाकर,
उसको हम जगाते थे ....
वो दिन भी याद आता है ,
जब किरायेकी सायकल लेकर
छोटी गलियोंमें धूम मचाते थे ,
घुटनों पर गिरनेके निशानके ओटोग्राफ लेकर घर आते थे .....
वो दिन याद आता है ,
जब स्टापू,गुल्ली डंडा ,गिट्टे की धूम मचती थी ,
शामको हुतुतू ,खो खो और लंगड़ी घोड़ी घुमती थी ,
केरम, लूडो ,चाइनीज चक्करसे दोपहर सजती थी ......
वो दिन भी याद आता है ,
मामा हमें लेने आते थे ,
मामीके घरमे एक लम्बी कतारमे हम
एक थालीमें दो जन खाते थे ,
बिछड़ते वक्त छोटी आँखोंमें बड़े बड़े आंसू भर आते थे ......
दिन तो वो आज भी है ,
पर रंग ढंग बदल गए है ,
बचपनकी शरारत तो है
बस उसे करनेवाले कहीं चले गए है ....
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
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