18 अप्रैल 2012

वो एक मात्र कमरा ...

मेरे घरकी छत पर आया वो एक मात्र कमरा ,
फिरसे खुलता है सालों बाद ,
साफ़ सफाई कर दी और खिड़कियाँ भी खुल गयी ,
झाड़ पोंछकर फिर चम् चम् करने लगा है ,
लगा वो फिर मुस्कुरा रहा है ....
उसने मुझे कहा चुपकेसे 
शुक्रिया फिर तुम आये तो सही ,
वो मेरी पुरानी खाट पर ,
वही पुरानी चद्दर धोकर बिछायी ,
फिर वही पुराना तकिया ढूंढ कर निकाला,
वही पुराना टेबलफेन की खर खर आवाज चालू करी ,
पर आज वो बड़ी प्यारी लग रही ...
रात वही ,आसमान वही ,चाँद वही और वही सितारे है ,
और कुछ कमी सी है जो खल रही है ,
वो निठ्ठलेपन का एहसास नहीं ,
वो मस्ती नहीं ,वो थकन नहीं जो दिनभर खेलकर लगती थी ,
और वो चुन्नू मुन्नू टीना और बसंती भी नहीं 
जिससे लड़ते झगड़ते थे .....
बस वही याद में पूरी रात गुजारी करवट बदलकर ...
और सुबह ....
किवाड़ पर खट खट हुई .....
वो चुन्नू मुन्नू टीना और बसंती सामने थे ....
चलो भूलकर हमारा आज हम फिर चलते है ,
बच्चे बनकर वेकेशनकी मौज मनाने...!!!
और वही ताल ,वही अम्बिया भी हमारे इंतज़ारमें मिली .....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...