4 मार्च 2012

तुम हो रूबरू...

66 पोस्ट अप्रकाशित और 934 पोस्ट प्रकाशित इस ब्लॉग पर और आज ये 1000 वी पोस्ट समर्पित है मेरे उन पाठकोंको जिन्होंने इस ब्लॉग पर पधारकर मेरी हौसला अफजाई की है ......हाँ ६६ पोस्ट वो है जो मेरे दिलसे निकल पड़ी थी बिना मेरी इज़ाज़तके और इतनी शर्मीली निकली की वो कागज़ तक आते आते पिघल गयी ...मेरी उस आधी अधूरी रचनाएँ भी मेरा सर्जन है जिसे पूर्ण करने की कोशिश नहीं की फिर भी :


कल बरगदके पेड़ तले
एक टूटीसी शाख पर बैठा
एक परिंदा गुनगुना रहा था कुछ ,
दूरसे उड़कर आया दूजा एक परिंदा ,
दोनों खामोश हो गए .....
फिर साथ साथ उड़ चले
दूर गगनकी छाँवमें ....
ओज़ल हो गए तब तक तकती रही मेरी निगाहें ,
 कशिश वो  आवाजकी कानोंमें गूंजती रही ,
कहीं दूर खो चली खयालोके गगनमें मैं भी अकेली ,
और दरवाजे पर एक दस्तक हुई ,
खोली किवाड़ें तो दिल धड़क गया !!!!
तुम हो  रूबरू ,
मेरी ख़ामोशी सुनकर भी चले आये हो  ...!!!!

1 टिप्पणी:

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