23 फ़रवरी 2012

कोरी कोरी ख़ामोशी ...

वो कोरी कोरी ख़ामोशी ,
धुली हुई साफ़ चांदनीसे ,
सुखा  रही थी रातकी झुल्फें
बुँदे सितारे बनकर बिखरती गयी ........
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कभी रातको देखा है करवट बदलकर इंतज़ार करते हुए ?
आँखोंमें तराश देती ही ये जलवा एक लालिमाको लिए ...
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तुम्हे ढूंढते रहना हर गली हर शहर ये आदतसी बन गयी है ,
क्योंकि हवाएं कहाँ दिख पाती है वो तो बहती रहती है एक रुख लिए .....

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