4 फ़रवरी 2012

इन आँखोंमें बैठकर ...

लहलहाते है सपनोके खेत इन आँखोंमें बैठकर 
तेरे आने की आहटसे उनमे बहार जो आती है ...
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ज़ख्मोको सिलनेके लिए आंसूओके धागे है ,
इश्कके अंजामको सहने रातको नींद भी आँखोंसे भागे है !!!
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ग़मोंको घोलकर छलक जाते है ये आँखोंके पयमाने
तभी बहते अश्क भी  नमकीन बन जाते है ....
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रातभर जागा करती है  ये सड़के भी मेरे साथ 
चाँद भी मेरे जख्मो पर मरहम लगाने आता है  ....
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नयी दुनियाको बसा लेने पर ये दिल दुआएं ही क्यों दे रहा ?
क्योंकि खुदके प्यार को हम कभी बददुआ कैसे दे सकते है?
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हरदम चलते रहे मेरे साथ ये हवाओंके चौबंद 
आज क्यों बिखरी बिखरी बह रही ये टुकड़ोंमें चंद????

1 टिप्पणी:

  1. हरदम चलते रहे मेरे साथ ये हवाओंके चौबंद
    आज क्यों बिखरी बिखरी बह रही ये टुकड़ोंमें चंद???बहुत सुंदर मन के भाव ...
    प्रभावित करती रचना ...

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