4 दिसंबर 2011

वो मुकम्मल घरौंदा.....

एक हंसी कायनात सजती है जिसके लिए
वो मुकम्मल घरौंदा एक डाली पर बैठा .....
चिड़ियोंकी फुसफुसाहट सुनता रहा ,
अब हमें पंख कब आयेंगे ???? उड़नेकी ख्वाहिश हमें ???
तब डाली हंस पड़ी
देखो मुझे तुम्हारे खाली घरौंदेको भी संभालकर रख लेती हूँ ,
बस येही आस लिए ,
एक दिन लौटेगा कोई पंछी यहाँ
जब परवाजोंसे वो थककर
दो घडी विश्रामकी आस भर यहाँ रुक जाएगा !!!!!
नहीं आता कोई जब
हवाकी लहरोंको कहती हूँ
ले जा ये घरौंदा उस पंछी के लिए
जिसके अन्डोमेंसे मैंने उसे बहार निकलते देखा था ..........
जब थक जाए अपने सिरहाने मीठी नींद सुला देना .....

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