10 अक्तूबर 2011

जगजीतसिंहजी के नाम ......

परिस्थितिका स्वीकार करो ....इसका जितनी जल्दी स्वीकार कर लेते है उतना ही हकीकतका सामना करना आसान लगने लगता है ....
जैसे की आपने आज कहा ...इकलौता बेटा विवेक जब इस फानी दुनियाको अलविदा कह गया होगा तब उनपर क्या गुजरी होगी ...जवान बेटेके जनाजे का बोज बापके कंधे पर वो दुनिया का सबसे भारी बोज करार दिया गया है ....उसी वक्त अपनी जीवनसंगिनी का साथ छोड़ देना ....उस इंसानकी आवाज में हम अपने सवालोंके जवाब पाते है ...अपने गम भुलानेकी वजह पाते है ...लेकिन वो इंसान किसके पास गया होगा ...संगीत के तार छेड़ते पहले कोई बंदिश बनाते वक्त उस समय पर उसने किसका सहारा लिया होगा ???
बस येही बात है की खुद के गमके लिए हम हमेशा सहारे की तलाश बाहर करते है ...लेकिन वो ताकत तो हममे ही छुपी होती है उसे आवाज नहीं देते ....हमने किसीको सराहा ...वो हमारी जरुरत बन गया ...लेकिन कभी उसकी जरुरत के बारे में नहीं सोचा .....
हर जन्मके पल ही लिखी जाने वाली एक लकीर वो हमारे जीवन का अंत होती है ये हम जानकर क्यों भूल जाते है ......पंद्रह दिनोंसे मौतके साथ झूझने की वो तकलीफ ,पीड़ा हम कभी बाँट नहीं सकते ...सिर्फ दुआ ही कर सकते है ...
खुशनसीब होते है इनके जैसे इंसान जो घरोंमें नहीं लेकिन लोगोके दिलो में रहते है .....फिर भी हर मौत हर व्यक्ति के लिए एक शुन्यावाकाश पैदा कर ही देती है और उससे उभरना भी खुद ही पड़ता है ........
उनकी जगह हम खुद को रखकर देखे तो शायद मालूम चल ही जाएगा ...
दर्द ही दवा होता है हर मर्ज़ का 
लेकिन उस पर लिखे हुए दर्द के लेबल देखकर 
हम इंसान है की डर जाते है ....
एक घूंट पीकर देखो 
तो खुद ब खुद हज़म हो जाता है ....
कुछ ना हो तो अकेले में खारे पानी को बह जाने दो ....कनारे तोड़ कर ....

1 टिप्पणी:

  1. तुम्हे ढूंढ़ रहा है प्यार,हम कैसे करे इकरार.... की हां तुम चले गए.......कहाँ तुम चले गए.....

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