3 अक्तूबर 2011

शायद जिंदगी छू कर चली गयी ........

कभी कभी जिंदगीसे प्यार करने की वजह नहीं होती ,
फिर अचानक जिंदगीसे क्यों प्यार हो जाता है ....
बस यही जद्दोजहदसे गुजर रही हूँ आजकल ....यहाँ पर नवरात्री महोत्सव अपने पुरे शबाब पर है ...और एक बड़ा गरबा मेरे घर के ठीक सामने हो रहा है .....शनिवार शाम मेरे घर पर मेहमान इस गरबे में हिस्सा लेने आये ....मेरे परिवार के सदस्य ही ....मम्मी को गरबा खेलना बहुत अच्छा लगता है और बेटी को नहीं खेलना था ...मेरी बेटी बहुत शौक़ीन है और मैं खेलती ही नहीं ...मैं और उस बेटी के साथ और उसकी मम्मी मेरी बेटी के साथ ...दोनों तैयार हुए ...तो एक लम्बा फोटो सेशन किया ...एकदम क्रेजी सा ....मैंने उनकी बेटी के साथ खिंचवाए और उन्होंने मेरी बेटीके साथ ...फिर दोनों खेलने चले गए और हम दोनों सामने फ्लेट के चौथी मंजिल के फ्लोर पर टेरेस में ...लगता था आय एम् ओन ध टॉप ऑफ़ ध  वर्ल्ड ....नीचे सितारे जमीं पर लगते थे ...खूब लोगों का जमघट ...और ऊपर एक तन्हाई ....शायद जिंदगी छू कर चली गयी ........
कल वैसे नियमानुसार देवीके मंदिर पैदल गयी ...वहां एक चारेक साल की बच्ची ...खूब सुन्दर गोरी ,नीली आँखे , मम्मी की तरह जैसे बड़ी औरतें पहनती है सलीकेबंद साडी पहनकर आई थी ...इतनी इतराकर चल रही थी ...मुझे हंसी आ गयी ...मैंने उसे पीछे से पुकारा ...मेडम ,गुड इवनिंग ....वो इतना खुबसूरत हंस पड़ी ..और जवाब दिया ...उसकी मम्मी से पूछा ..तो कहा ऐसी साड़ी सिलवाई है .....वो भी खुश हो गयी ...फिर एक बार निकलते वक्त मुझे वो मिल गयी ...मैंने कहा : बाय बाय मेडम !!! तो हँसके बाय बाय भी कहा ...नाम पूछा तो कहा श्रध्दा ......हाँ ...श्रध्दा  भगवानमें ...शक्ति में ...एक अनजान रिश्ते में ...एक बेनामी  के रिश्तेमें झलकते  सच्चे प्यारे में ...एक अनछुए एहसास में ...दो पलकी सच्ची ख़ुशी में ....
लगा जिंदगी मुझे छूकर निकल गयी ...श्रध्दा के रूप में ...पता नहीं फिर मुलाकात होगी भी या नहीं पर मेरे मस्तिष्कमें तो ये ताज़ा फूल की तरह याद रह जायेगी ...
बाय श्रध्दा .......

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