13 सितंबर 2011

जीने की वजह

कुछ कहनेके लिए जब लब्ज़ थरथराते है ,
तब कभी शब्द साथ छोड़ जाते है .......
अनकही दास्ताने अधूरीसी लगती हो कभी
तो आँखें भी अफ़साने कह जाती है......
दास्तानें जो नहीं लिखी गयी किताबोंमें 
कैद होकर किसीके दिलमें भी रह जाती है......
ना कह पाने की क्या मज़बूरी थी क्या पता ????
बस ये किस्से किसीके जीने की वजह बन जाते है.............

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