8 सितंबर 2011

एक राह

एक राह तनहासी कभी क्यों नहीं लगती ?
क्योंकि उसे तन्हाईके मायने नहीं मालूम ....
एक दरख़्तको एक जगहकी मायूसी क्यों नहीं होती ??
क्योंकि उड़नेकी ख्वाहिशें पालते परिंदों का भी वो आशियाना है ....
एक फूलको क्यों ख़ामोशीसे परहेज नहीं होता ???
महकाती हो जब गुलशनको उसकी खुशबूएं खामोश रहकर भी .....
रस्ते क्यों तनहा नहीं रहते ???
मंजिलोंके राहों पर चलनेवालोके वो साथी जो बन जाते है ........

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...