2 सितंबर 2011

अजनबी फिर भी मुझे

आजकल चेहरे बदल दिए है आयनोने,
मेरा अक्स मुझसे हंसकर मिल रहा है ....
भरम है ये मेरी नज़रोका मेरी ये मुस्कुराती हुई तस्वीर
या आजकल ये दिल का मौसम कुछ बदला बदलासा है !!!!!!
कोरे कागज़ रख छोड़े थे रात पर मेज पर
कौन उस पर मुझे ही एक नज़्म बनाकर अल्फाजोंमें कैद कर गया ????
खुली खिड़कीके उस पार एक घना दरख़्त है
कौन हर पत्ते हर शाख पार मेरी तस्वीर बनाकर छोड़ गया है ????
खुले आकाशके बिखरे हुए बादलोंमें
एहसासकी बूंदोंकी नमी को सहेज कौन मुझ पर बरस गया है ????
एय अजनबी !!! आवाज देकर मुझे अपना नाम तो बता जाओ !!!
हो तो अजनबी फिर भी मुझे अपने से लगते जाते हो .....

1 टिप्पणी:

  1. ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से……………बहुत सुन्दर रचना मन को भा गयी।

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