27 अगस्त 2011

कांपते लब ....



कांपते लबोंसे जो बयाँ ना कर पाए ,



वो इश्कका इज़हार हमने तेरी आँखोंमें पढ़ लिया ......



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ख्वाबोंसे जगाकर एक उल्ज़ीसी लट



रुखसार पर आकर ठहर जाती है जब ,



गवाही दे जाती है ये हवाकी सरसराहट भी ,



बस आपने शायद हमें याद किया है .....



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शर्मों हया की लाली से सजती है मेरी सांज



इश्कके सदकेमें जैसे मेरी हर दुआ मुक्कमिल हो जाती है ......


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