11 जुलाई 2011

जब धूप .....

धूप जब सिलवटोंमें आती है ,

सिलवटोंके भीतर बादलकी सतहें नज़र आती है ........

बादलोंकी चुनर बूंदोंके तानोंबानोंसे गुथी हुई सी लगी ,

हवाओंके साथ वो चुनर उड़ती जाती है .......

ये कैसे कश्मकश है जिंदगीकी ??!!

जिसका इंतज़ार करते रहे हम

उसके आनेसे लगा ,

वो इंतज़ारके लम्हे कितने भले से थे !!!

अब पास हो फिर भी दूर से ,

जब दूर थे तो सिर्फ हमसे जुड़े थे !!!!!!

कविता

जब धूप .....

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