8 जुलाई 2011

बहकीसी बुँदे .....

कलसे मौसम कुछ गुनगुना रही थी ,
हौलेसे जैसे किसीसे प्यारका इज़हार कर रही थी ,
नज़्मसी बहकीसी बुँदे ,
पानीसे एक आग लगाकर चली गयी ,
सारी फिज़ाओमें कुछ इश्किया नशा महसूस महसूस किया ,
बस एक पुरानीसी तस्वीरसे धुलकी परतें उतरती गयी ....
वो बारिशकी बुँदे , वो खुशबु भीगी मिटटी की ,
वो दिये जलते हुए आँखोंमें उनके इंतज़ार के ...........
एक ख्वाहिश गुनगुनाती हुई ,
एक ख्वाहिश इस सावनमें भीग जाने की ....
धीरे धीरे धीरे जैसे चढ़ता नशा ......
मौसमका या इश्क का !!!!!

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