
चाँदकी तश्तरी सजी थी आसमांकी मेज पर ,
एक तस्वीर बनाकर चाँदकी 
सजा दी रातकी दीवारों पर ,
रात हंस पड़ी ,तारे खिल गए मुस्कराहटसे ,चाँद भी शरमा गया ....
पूनम का था या चौदहवी का ये तो नहीं मालूम ,
फिर भी फिजामें कोई सूर बिखरने लगा ....
ये आफताबकी गर्मी थी 
फिर भी माहताब पिघलता चला ,
बस इंतज़ारमें आफ़ताबके 
ये चाँद निगोड़ा क्यों जलने लगा ?????
उसकी लपटोंसे टपक टपक शबनम ,
तकिये को भिगाने लगी ,
मुझे भी कोई याद आ गया इस तरह ,
मैं भी चांदनीके संग जलने लगी .....
 
 
 
 
vicharniya post ,marmikata se purn sadhvad .
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