31 मई 2011

सफ़र का सन्नाटा

दूर दूर तक नज़र जा रही थी ,
बस धरती पड़ी हुई थी अपनी मट्टी ओढ़कर ...
ना कोई घासका दोशाला था ,
ना कोई पेड़ का घना साया था ...
ना कोई पंछीकी चहचाहट थी ,
ना कोई गाय या भैंस वो जुगाली करना था ....
बस एक सफ़र बिलकुल विराना सा ....
एक मुक्तलिफ़ सफ़र था ....
जैसे वो मेरी जिंदगी का एक वर्तमानका पन्ना था .....
सब कुछ है पर नज़रोंसे दूर कहीं दूर ....
मेरे इंतज़ार का एक सबब ....
एक अनजान मंजिल सा ....
दूर से दो अजनबी एक दुसरेकी राह तकते हुए ....
बस एक सफ़र का अंत ...अंत ...अंत ....
फिर एक शोर इन ध सिटी ....ख़ामोशी टूटी हुई ....

1 टिप्पणी:

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...