कल यूँही बस बहती हवाओमें जैसे तुम्हारी सदा सुनाई दी
ना थे पास तुम कहीं भी ,पर तुम्हारी हँसी सुनाई दी .....
चांदनी अहातेमें बैठने आई मेरे ,
ग़ज़ल कुछ काफियेमें बँट कर कुछ गुनगुना गयी ......
बस ये एहसासोंका सैलाब था
जो सिमट ना पाया कुछ शब्दोंकी मुठ्ठीमें .....
बस अश्क बन टपकता रहा मुठ्ठीसे मेरी
और जमीं पर एक नज़्म लिखता रहा .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...
-
बंदिशें बनती है धूपमे भी कभी , सरगम बनकर बिछ जाता है धूप का हर टुकड़ा , उसके सूरसे नर्तन करते हुए किरणों के बाण आग चुभाते है नश्तरों के ...
-
एहसान या क़र्ज़ कहाँ होता है इस दुनिया में ??? ये तो रिश्तोंको जोड़े रखने का बहानाभर होता है .... बस मिट्टी के टीले पर बैठे हुए नापते है ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें