कहती है पतंग क्या ?
कट जानेके डर से क्या उड़ना छोड़ दें
ऊँचे उड़ना हो तो खुद को दुनियादारीसे बोजसे भारी मत बना दो ,
मेरी तरह कागज़ के बन जाओ हलके फुलसे बन जाओ .....
शरीर में चर्बी और मनमें दुःख ,कलेश ,राग द्वेष जो पालोगे
एय इंसान तुम कभी जमीं से ऊपर ना उठ पाओगे ....
अपना मक़ाम जो ऊपर उठाना है तुझे ,
संकल्प की डोर से खुद को बांध ले ......
आदर्शसे जब पेच लड़ जाए ,
तो कटनेसे भी मत डर .....
तेरी राह जरूर बदल जाए शायद ,
पर खुद को बदलना नहीं ...
बिजली के तार मिले या पेड़ मिले राहों में ,
बिन हवा के उड़ना पड़े ये तेज हवा के झोंकोमें
अपनी गति अपना रूख तु हवासा करता चल ,
मत पलट अपनी राहोसे ,
या आकाश माप ले या फिर कटता चल .........
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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