बज़्म सजी थी ...
एक हुजूम था दोस्तोंका ...
नज्मे मेहमान बनकर आई थी ,
इरशाद और अर्ज़ किया है की गुजारिशे थी ........
वो आया ...
दरवाजे पर खड़ा रहा था ....
उससे नज़र मिली ,पर वो तशरीफ़ ना लाया ...
बज़्म मैंने भी न छोड़ी ये सोचकर कि मिल लेंगे बाद में ...
वो लौट गया ....खाली खाली निगाहें लेकर .....
दुसरे दिन उस वक्त नज़र दरवाजे पर गयी ,खाली लौटी ....
फिर निगाहें दरवाजे को तकती और खाली हाथ लौटती रही .....
अब तो भरी बज्मे भी खाली महसूस होने लगी थी ....
अब तो नज्मे भी बे मतलब लगने लगी थी .....
भरी महफ़िल भी तनहा करने लगी थी ......
रस्ते पर पसीना पोंछने रुमाल निकाला ....
ये वही रुमाल था जिससे उसने मेरे आंसू पोंछे थे ....
मैं जिंदगी हार गया था तब जीत की उम्मीद दिलाई थी .....
उसे संदूकमें संभालकर रख दिया कीमती जेवर के साथ ....
अभी भी लौटती है नज़रें खाली हाथ दरवाजे से होकर .....
वो अब फिर ना आएगा कभी ये संदेसा लेकर ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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बहुत सुंदर.... कविता दिल को छू गई...
जवाब देंहटाएंएक कसक लिए हुए ,,,,,सुन्दर सी रचना ...बहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !