बसमें जल्दी चढ़कर तेरी सिट रोकते थे ,
रिसेसमें गोलाकार बैठकर नाश्ता करते थे ,
स्कुलकी छुट्टीकी घंटी बजते ही
शोर मचाते क्लाससे बाहर दौड़ते थे ......
गणपतकी सायकलकी चाबी चुराकर
तुम मुझे सायकल चलाना सिखाते थे ....
धक्का देकर कब्बडीमें हम जब तुम्हे गिराते थे ,
तेरे छिले घुटनों पर अपना नया रुमाल बांध देते थे ....
नयी पेन्सिल ना देते मुझे एक बार
हम तुमसे रूठ कर घर अकेले आते थे ....
दुसरे दिन अलग बेंच पर बैठकर हम गुस्सा दिखाते
तब वैसीही नयी पेन्सिल तुम धीरे से मेरी बेंच पर रख जाते थे ....
किट्टी बत्ती हो जाती थी और
एक दुसरे के कंधे पर हाथ रखकर हम घर लौट आते थे .......
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आज ए सी वाली कार में तेरी सायकल याद आती है ,
फ्रेश फ्रूट ज्यूसके गिलास में तेरी कच्ची आम और पके बेर सताते है
डिजाइनर कपड़ोमें जब देखता हूँ आयना ,
तेरी वो पेंट जो खुश होकर मैंने पहनी थी एक दिन
उसका पेट से बार बार सरक जाना रुला जाता है ....
अनचाहे लोगोसे मुस्कुराकर मिलते वक्त
तेरा तु रूठ मैं मना लू वाला फंडा याद आता है .....
प्लेन ट्रेन में रिजर्व सिट पर बैठते हुए
तु बस में मेरी सीट रोकता नजर आता है .....
तेरी अनगिनत यादे मेरी आँखों को रुलाती है
और तेरा हँसता हुआ चेहरा हरदम दिख जाता है ...
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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02.08.10 की चिट्ठा चर्चा में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.com/
मित्रता दिवस की बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंvery nice poem of frienship.. really true
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