अब साहित्य के नौ रससे रंगी ये बारिश .....
शांत रस बनकर टिप टिप कर बरस जाती है
श्रृंगार रस बन सज जाती है हरी चद्दरसी धरती का आँचल बन ...
गरज बादल की कोई लड़ाकेकी वीर रस की झलक दे जाती है
छिपकर किसी कौनेसे सूरज की नटखट किरन
बादल के केनवास पर मेघधनुषका अद्भुत नज़ारा दे जाती है .....
बचपन गूंजता है गलियोंमें शहर की हास्य रस बनकर
छापक छै करता बचपन नहाता है जब भरपूर सावनमें ....
तोड़ती है किनारों का बंधन ये बहती नदी
सैलाब बनकर इंसानकी आँखोंमें करुण रसमें भीगे अश्क ले आती है .....
सावनके साथ बिजली मेहमान बनकर आती है जमीं पर
उसकी कड़क फिजाओं में भयानक रससे दिल को देहलाती है .....
गिले यौवनको तकती हुई काम लोलुप आँखों में
बीभत्स रस की शर्मनाक छाया भी कहीं नज़र आती है
इस गुस्ताखी पर बादल के जोरों के टकराने में
रौद्र रस की गरज सुनाई देती है .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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प्रीती जी कमाल कर दिया ……………आपने जिस तरह से बरखा के रसों का अनुभव कराया है काबिल-ए-तारीफ़ है…………………सच सारे रसों का आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंनव रंगों का बरसात के माध्यम से अनूठा प्रयोग |बहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंनौ रंगी बारिश में साहित्य के नव रस की तलाश..!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..बधाई.
bhut khubsurat hai ye kavita.. aur bhut rasmaya bhi.. shukriya in rason k liye.
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट आज के (१७अगस्त, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - शनिवार बड़ा मज़ेदार पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/