कब कहाँ कैसे हम उलजकर रह चले थे जिंदगी की राहमें ,
जब आया होश तो तनहा ही चल रहे थे एक सुनी सड़क पर ,
कारवां छुट चूका था कहीं दूर और हम बेखबरसे चल पड़े ,
बस तब ये हो गया हमें तुम्हारी यादने सताया यूँ जी भर के
मंजिल को छोड़ हम वापस मूड गए तुम्हारी राहो पर फिर
मदहोश पड़े थे यूँ बावरे से तुम भी हमसे बिछड़कर ,
आज हमने बादलों को घटाओं को निचोड़कर तुम्हारे शाने पर
बस बारिशकी बूंदों से फिर जिन्दा कर दिया .....
लौट आये हम भी अपने दिल के सुकून के पास .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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बहुत बेहतरीन!
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