26 मई 2010

कभी कभी तुम्ही

कभी खामोश रहकर ,

कभी नज़रें उठाकर ,

कभी नज़रें झुकाकर

कभी हवामें बहती खुश्बूसे

कभी उड़ते हुए एक सूखे पत्ते की तरह

कभी इंतज़ार की शमामें जलते हुए

कभी मिलनके पलों में भीगते हुए

कभी नगमों को बोलोंको घोलकर

कभी ख़ामोशी की लहरोंमें सदा की तरह

कभी भीड़ में भी तनहाईके आलमको सजाकर

कभी अकेले में यादों की भीड़ लगाकर

मेरी जिंदगीमें क्यों समां गए हो तुम इस कदर ??????

जैसे चल रही हो तुम्हीसे हमारी साँसे .....

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