19 मई 2010

एक बेकरारी ...

ना निगाहें मिली थी ना कोई फ़साना बना था

बेगानोंके इस जहाँमें फिर भी कोई अपना सा था .....

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इंतज़ारका शहद घोलता गया

इकरार भी प्यास छोड़ता गया ,

आँखोंमें उनके आने का बहाना ,

मिलनेकी बेकरारी छोड़ता गया .......

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शिकवे शिकायत का ये मौसम तो नहीं ,

दूरी भी बन सकती है मजबूरी कभी

ये हमें आपको बयां ना कर पाए कभी

क्योंकि ...

एक निगाह काफी है इजहारे इश्कमें

कोई लम्बी तकरीर की जरूरत नहीं .....

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