15 अप्रैल 2010

मुझे प्यारा तु फिर भी

एक नया सिलसिला है ये ...की किसी एक शब्द को ही लेकर मैं जितनी शायरी या कविता लिख सकूँ ये आजमाईश कर रही हूँ ...और ये मेरी खुद की परीक्षा है जो मैं खुद ही ले रही हूँ ....इस वक्त में अँधेरा शब्द चुनकर उस पर ही कुछ फरमा रही हूँ ...........................................
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अय अँधेरे क्यों बड़ा बदनाम तु ?
क्या निखरता चाँद और क्या जानते हम भी
क्या चीज है ये चांदनी या कितना है चाँद खुबसूरत ???
शुक्र गुजार है ये कायनात की खुद को बुझा तुने रोशन जहाँ किया ..........
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अय अँधेरे क्यों बड़ा बदनाम तु ?
कितने आंसू चुपचाप पोछ लेता है तु !!!!
कितने दर्द को अपने काले दामनमें छुपा लेता है !!!!
जो बिछड़ जाते है दिनमें इस दुनियाके मेलेमें
वो दिल तुम्हारे आँचलमें फिर एक बार मिल जाते है ......

4 टिप्‍पणियां:

  1. अय अँधेरे क्यों बड़ा बदनाम तु ?
    कितने आंसू चुपचाप पोछ लेता है तु !!!!
    कितने दर्द को अपने काले दामनमें छुपा लेता है !!!!
    जो बिछड़ जाते है दिनमें इस दुनियाके मेलेमें
    वो दिल तुम्हारे आँचलमें फिर एक बार मिल जाते है ......

    bahut sundar


    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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