आज फिर वही सुबह ,
आज वही पुराना मंज़र !!!
चलते चलते रुकते कदम
मूड मूड कर पीछे देखती निगाहें
जाने हो किसीके आने का इंतज़ार बेसब्रीसे ,
फिर भी ऐतबार भी शायद ना आये फिर .....
जिसका हम इंतज़ार कर रहे ,
सब्र का पयमाना छलकाए ,
आँखोंको राहों पर अपलक टिकाये
हर वक्त सोचके जहाँमें यादों को फिर फिरसे सहलाए ,
शमासे उठती लौ में उसके चेहरे को उजागर पाए ,
बुझती शमाके आखरी बूंदको अपनी आँखोंमें छलकाए ,
एक बार मुआफ करदे ...
दस्तक देते जाओ हमारी जिंदगीकी किवाड़ पर
हमें जीने की वजह देते जा ...
मेरे महबूब ,मेरे दोस्त ....
bahut sundar.
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