चुप था सूरज
चुप था रातको चाँद भी
चुप थी वादियाँ
चुप थी ये मयकशी सी शाम ,
बस आज की शाम बहुत कुछ बोल गयी
यूँ ही खामोश रहकर ....
इंतज़ार जिसका रहा हर पल हमें ,
प्यारके इजहार भरी नजरकी जो हसरत पल रही थी दिलमें
ख़ामोशीके आलमकी बहती हवामें हमें वो मिल गयी ...
बहुत ही सहे कहा प्रीटी जी आपने !!
जवाब देंहटाएं'जुबाँ जो कहने में लड़खड़ाती है !
खामोशी बड़ी साफगोई से कह जाती है !!'
बहुत खूब !!!!
अच्छा रचना।
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