जब खिचडी जले आना ,
जब चावल कोयला भये आना
श्रीमती खन्नासे बात तुम्हारी
अधूरी ना छोड़ आना .....
जब बासी कढ़ी हो फ्रिज में पड़ी और
साथ में हो ये खिचडी जली
हर रोजकी तरह तुम फिर से
मुझे आधा भूखा सुला जाना .....जब खिचडी जले आना
पुरा पका खाना मुझे पचता नहीं ,
आधा कच्चा पका खानेकी आदत है ,
जब मइके जाओ तुम मुझको
ना साथ ले जाना ........जब खिचडी जले आना
डॉक्टर भी मुझे चिढाते है ,
हाजमे का राज बताने को ,
क्या मैं कहूँ किस्मत मेरी
तुम भी ना लिखा आना .....जब खिचडी जले आना .....
( फ़िल्म चित्तचोर के जब दीप जले आना ...के राग पर ये कविता गा सकते है ....)
खाना अच्छा खिलाईये
जवाब देंहटाएंआपकी कविता अपनी आत्मीयता से पाठक को आकृष्ट कर लेती है।
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