10 सितंबर 2009

कोहरा

कोहरेसे लिपटी हुई इन राहोंने

मुझे अंधेरेको पीना सिखाया ....

लम्बी राहों पर जिंदगीकी मंजिलोंसे नहीं

दो दो कदम पर बिखरे फ़ूलोंसे पत्तोंसे प्यार होता चला गया ......

सारी राहें दिलकश नझारोंसे वाबस्ता थी

कदम दर कदम बढ़ता हुआ हर मंझर पर ये बयां हुआ करता था .....

जिंदगी के लंबे सफरको बरसोंमें नापकर थक सा गया था ,

लम्हे लम्हे जोड़कर गम खुशी के मैं उम्र जोड़ता चला गया ....

1 टिप्पणी:

  1. bahut sundar abhivyakti...kam shabdo me apne vicharo ka bahut khub chitarn kiya apne
    aapse jud kar hum bhi kuch sikhan chahte hai....

    shubham jain
    http://cmindia.blogspot.com/

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