आज तुझे भूल जानेकी चाहता हूँ इजाजत ,
इस रईसीमें हो जैसे गुरबतकी हिमायत ...
गुलदान सजा लूँ तेरी यादोंके गुलोंसे बस थोडी सी है जहेमत ,
अब तो सायेसे भी अपने हो गई है खिलाफत ....
इश्कमें कैसे तेरे हो सकू कैसे कुरबां ?अब ये चाहता नसीहत ....
कह दे मुझे अय मेरे खुदा कैसे करूँ तेरी इबादत ?
माफ़ कर देना मुझे क्योंकी अब इश्क बन गया है मेरी इबादत .......
शानदार गज़ल के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंwaah waah.........bahut hi khoobsoorat bhav........ishq jab ban jaye khuda to fir fark rahta hi nhi ishq aur khuda mein.
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