31 जुलाई 2009

एक सुबह तुम्हारी याद आ गई ...

आज सुबह का हँसी समां था ,

ऐसे ही बैठे थे उगते सूरज का नजारा था ,

हाथमें खुली डायरी थी, कोरे पन्ने थे ,

दांतों तले कलम दबाये शब्द को पढ़ रही थी .....

खुले आसमानके रंगों की भाषामें लिखे थे ,

हसीं वो तस्वीरें कुछ फरमा रही थी

और मुझे तुम्हारे साथ गुजरे वो हँसी पलोंकी

बड़ी शिद्दतसे याद आ रही थी ....................

अनजानेमें ये नटखट आंखोंसे कुछ अश्क बेकाबूसे बह गए ,

उस कोरे पन्ने पर तुम्हारी तस्वीर बना गए ,

मेरी सहर तुम हो, मेरी शाम तुम हो ,

मेरी जिंदगीकी इब्तदा से इन्तेहाँ तक का सफर तुम हो .......

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