गुजरते थे आपकी गलीसे भी हम
दरवाजे पर आपके दस्तक भी देते थे
कोई और ही किवाड़ खोलता था
और हम खामोश ही लौट जाते थे ...........
आपकी क्या मजबूरी है
ये हमें मालुम तो नहीं
पर किसी और से दुआ सलाम करना
ये हमें नागवार गुजरता था .........
जश्नमें शायद ऐसा भी हुआ हो
की सिर्फ़ एक पलके लिए भी
आपने याद भी कर लिया हो गलतीसे
और हमें बेवफा भी समजा होगा ..........
आए थे हम हर वक्त की तरह
और आज भी किसी औरने ही दरवाजा खोला
हाथके गुलदानको हमारे अश्क ने ही सींच दिया
और हम टुटा दिल लिए दहलीजसे लौट गए ...........
अब हमें बेवफा समजा करो या फ़िर नादान
अब हमें कोई फर्क नहीं
आयेंगे न सामने कभी आपके
बस गर गुजरो कभी यादों की गलियों से कभी
शायद वहीं तुम हमें पाओगे .........
bahut sundar kaavya hai
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