प्रिय चाय ,
जबसे मुझमें समजदारी आई है तब से मेरी सुबह में तुम्हारी जगह बचपनसे पायी थी ...जब किचनमें सुबह चीनी मिटटी के कप की खनक सुनाई देती थी तब मेरी आँख खुलती थी ...मुंदी आंखोसे ब्रश करना और सीधे चाय के पास प्रस्थान ...तेरा पहला घूंट जैसे जान की पहली किरण देता था और दिन की शुरुआत हो जाती थी ...शाम जब स्कुल से लौटती थी तब शाम पॉँच बजे पापा के लिए बनी चाय के साथ एक और कप ढँककर रख दिया जाता था और वो ठंडी चाय भी ...तुम मुझे हर रूपमें प्यारी लगी थी मेरी राम प्यारी .........
शादी के बाद मेरे पतिदेव् की एक बात मुझे झटका दे गई ...उन्होंने कभी चाय चख्खी भी नहीं थी और मेरी सुबह चाय के बगैर हुई न थी ...शुरूआत के दिनमें तो उनको प्रभावित करनेके चक्करमें घरमें नहीं पीती थी पर ऑफिसमें जाकर दो तीन बार तुम्हारे बगैर रहना नामुमकिन था ...खैर पतिदेव समजदार थे उन्होंने ख़ुद लाकर चायकी पत्ती घर में रख दी और मेरा तुमसे अब तक अटूट नाता जुड़ सा गया ...मेरे बचपन का प्यार जीत गया और जिन्दा हो चला ...
बीमारीमें एक दिन मुझे एक कप ऐसी चाय मिली जिसमे एक कप की पत्ती ,चीनी ,थोड़ा सा दूध और चार कप का पानी ....उस दिन एक शपथ ले लिया चाय पीनी हो तो घर में ख़ुद ही बनाने की ...अब तक ये शपथ जारी है ...चाहे १०३ डिग्री बुखार हो तो भी ख़ुद ही बनाने की ....
वैसे हम गुजराती लोग दूध पाक ( पतली खीर ) जैसी मीठी ,दूध से भरपूर ,खूब उबली हुई चाय पीते है ....शरबत और चाय एक साथ .....साथ में चायका मसाला ,अदरख ,पुदीना या तुलसी भी चले ...हाँ चाय में भी भिन्नता पसंद ...चिनाई मट्टी के कप प्लेटमें प्लेट में चाय डालने की और एक लम्बी सुदूप करके चुस्की मारने मजा ही कुछ और होती है ...कांच के गिलास का स्वाद नहीं पसंद आता ....
दार्जिलिंग की चाय होती है वह बहुत ही लाइट होती है ...उसे बनाते वक्त चीनी वाले पानी में पानी उबल जाने पर थोडी पत्ती डालकर ढककर उसे रखलो और जब थोडी देर हो जाए तो छान कर उसमें थोड़ा दूध मिलालो क्या खुशबू आएगी!!!!!!ऊटी की चाय भी ऐसे ही पि जाती है ...अगर दूध की जगह नीबू के दो तीन द्रोप्स दाल कर काली चाय पि जाए तो सच एक अलग ही अनुभव है ....वैसे आम चाय की भी काली चाय अच्छी लगती है ...जब खूब थक जाती हूँ तब मैं तुम्हे यूँ काली ही पि जाती हूँ ...
ऑफिसमें काम के टेंशन में मैंने एक साथ ७/ ८ कप तक भी चाय पि है ...पर अब तो दिन में दो कप ही ...
कहते है ...ये उबला पानी एक नशा है जो जायज भी है ...अब तो बाज़ार में अनगिनत वेराइटी मिलाती है ..हर्बल से लेकर जाने कितनी ही ....पर वो सुबह की चाय ...क्या कहने !!!!
चाय तेरे बगैर जिए तो क्या जिए !!!!!
तुम मेरे सुख और दुःख में साथ ही रही हो ...तुम्हे आज ये ख़त यानी की लव लैटर लिख कर मेरा प्यार जताती हूँ ...
तुम्हारी ही ,
सलोनी ......
बहुत अच्छी पोस्ट है
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