3 जुलाई 2009

मेरे दोस्त .....

वो बात कहनी है मुझे,
किसे बताऊं ? मम्मी ,डांटेगी....
पापा? उहूं शर्म आयेगी ...
ये बात जिसे मैं बेधडक कह पाऊं..
निगाहें ढूंढ रही उसे आज क्यों...
कौन है ? जिसे मैं दिलकी बात बता पाऊं?
हां, वह है जिसे कहती हूं मेरा दोस्त....
आयना है मेरे लिये मुझे जो अक्स दिखाता है...
चेहरे पर पडा ये घावका निशान तेरी दोस्तीकी याद दिलाता है...
और तुम हमेशा अपने रुमालसे
आजभी अपनी दोनोंकी तसवीर परसे धूल पोंछते हो....
मेरी उदासी उसके गमकी वजह बन जाती है,
उसके आंसूसे मेरी रातोंकी नींद उड जाती है...
न खूनका रिश्ता है कोई फिर भी इसका बंधन मजबूत है...
ये जादूगर तो मेरा दोस्त है...
जो खुशी बनकर हंसीके तोहफे दे जाता है...
अश्कको मेरे खुद रुमाल बनकर पोंछ जाता है....
मैं छूप जाऊं तो गली गली ढूंढने जाता है..
चिटींग करके जीतता हूं तो खफा हो जाता है....

मूंह फूलाकर फिर घूमते थे दो दिन .
फिर दोनोंके सेलफोन पर एक मिस्ड कोल आता है...
शामको चाइनीज नुडल्स खाने के बाद,
फिर एक सिनेमा देखने का प्रोग्राम बन जाता है....
आज इस उम्रमें भी मुझे वो दिन याद दिलाकर...
तु मुझे हंसाता भी है ...रुलाता भी है.......

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