18 फ़रवरी 2009

चलो जिंदगी तुम्हे तक़दीर से मांगते है .......

बेसुध हो जाते है ,होश भी कुछ खो से जाते है ..
अल्फाज़ हमारे उस वक्त जैसे सो जाते है ,
सपने भी पलकोंसे वापस चले जाते है ...
ये करिश्मा तेरी कलम का ही है महकती है गुलजार सी जो ,
हम शब्दोंमें लिपटे अफसानोंमें हमारी दिलरुबाका दीदार करते है
होश खो जाते है जब तसव्वुरसे तुम्हारे तो तुम्हे तक़दीरसे मांग कर देखते है ...
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जज्बात हममें छुपे हुए ऐसा रंग लाते है ,
दबी हुई ख्वाहीशोंको कलमकी स्याही बनकर उजागर कर जाते है .
कभी कभी किसीका साथ होते हुए हम भीड़ में भी तनहासे हो जाते है ..
तन्हाईके आलमसे गुजरते हुए कभी हम यादों के मेलेमें घूम आते है ...

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आंखोमें कुछ सपने सो रहे है जगाना नहीं ,

नींद तुम्हें थोडी देर बाहर जाना नहीं ,

चलो नींद आज इन सपनोंको मेरे पास छोड़ जाओ ,

तुम्हे गर जाना है तो रात कुछ और सपनोंको साथ लेकर आ जाओ ................

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4 टिप्‍पणियां:

  1. निंदिया आना नहीं पांव तोरे पड़ूं
    रैना आना नहीं पांव तोरे पड़ूं
    ..अच्छी रचना.

    जवाब देंहटाएं
  2. कभी कभी किसीका साथ होते हुए हम भीड़ में भी तनहासे हो जाते है ..

    कितनी सच्ची बात कही है आपने...बहुत खूबसूरत रचनाएँ लगीं आपकी...बधाई

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  3. ये करिश्मा तेरी कलम का ही है महकती है गुलजार सी जो ,
    हम शब्दोंमें लिपटे अफसानोंमें हमारी दिलरुबाका दीदार करते है


    -बहुत बेहतरीन बात कही.

    जवाब देंहटाएं

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