सोच की लहरों पर एक तस्वीर तैरती रहती है ,
जैसे समंदर में चाँद की तस्वीर उछलती है ,
मनके तरंग को क्या कहे वो काबू में नहीं है ,
एक डूबती सांझकी बातोंमें तेरे जिक्र की तहरीर रहती है ....
कहीं खुशनुमा रात बनकर सज रही होगी ,
कहीं तारों की चादर में ढककर रखेगी अपने चहेरे को ,
एक उलझी सी लट उस दायरे से निकल कर ,
तेरी हंसी की गवाही देती होगी ....
इंतज़ार में कटे कितने ही लंबे सालो के फासले ,
बस तेरे गांव की सरहद पर बेसब्री यूँ बढ़ी ,
जैसे जान अभी निकलकर जिस्म से ,
तेरे ड्योढ़ी पर जाकर बैठी होगी ......
जैसे समंदर में चाँद की तस्वीर उछलती है ,
मनके तरंग को क्या कहे वो काबू में नहीं है ,
एक डूबती सांझकी बातोंमें तेरे जिक्र की तहरीर रहती है ....
कहीं खुशनुमा रात बनकर सज रही होगी ,
कहीं तारों की चादर में ढककर रखेगी अपने चहेरे को ,
एक उलझी सी लट उस दायरे से निकल कर ,
तेरी हंसी की गवाही देती होगी ....
इंतज़ार में कटे कितने ही लंबे सालो के फासले ,
बस तेरे गांव की सरहद पर बेसब्री यूँ बढ़ी ,
जैसे जान अभी निकलकर जिस्म से ,
तेरे ड्योढ़ी पर जाकर बैठी होगी ......
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