आज कल थोड़ा सा आलसी बनकर सूरज ,
बादलों में लिपट कर बैठा रहता है ,
वो हवाओं के तो पर निकलकर आये है ,
उड़ती फिरती रहती है यहाँ से वहां ....
बूंदों को छुपाए बादलों को कंधे पर बिठाकर ,
इंतज़ार कर रही है धरती पर रुख करने का ....
बादल और सूरज छुपनछुपाई खेलते है ,
तब हवाएं थम जाती है ,
चेहरे पर पसीने की बुँदे जम जाती है ...
नखरे मत दिखा अब तो ,
चल आ जा बारिश अब के शाम को ...
मिलने का वादा चाहिए तुमसे ....
बादलों में लिपट कर बैठा रहता है ,
वो हवाओं के तो पर निकलकर आये है ,
उड़ती फिरती रहती है यहाँ से वहां ....
बूंदों को छुपाए बादलों को कंधे पर बिठाकर ,
इंतज़ार कर रही है धरती पर रुख करने का ....
बादल और सूरज छुपनछुपाई खेलते है ,
तब हवाएं थम जाती है ,
चेहरे पर पसीने की बुँदे जम जाती है ...
नखरे मत दिखा अब तो ,
चल आ जा बारिश अब के शाम को ...
मिलने का वादा चाहिए तुमसे ....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " यूरोप का नया संकट यूरोपियन संघ... " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह बारिश से वादा जरूर चाहिये वह भी खुल कर मिलने का। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं